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छितरी इधर उधर वो शाश्वत चमक लिये
देखी जब रेत पर बिखरी अनाम सीपियाँ
मचलता मन इन्हें बटोर रख छोड़ने को
न जाने यह हैं किसका इतिहास समेटे

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5 November 2009

तीन अलग कवि ..तीन अलग कविताएं ....तीन अलग सोच .......

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VIVIDHA-thumb  कुछ कविताएं ऐसी होती है जब लिखी जाती है तो जाने क्या सोचकर .पर जब सामने आती है तो कई लोगो की बन जाती है ..कभी कभी सोचता हूं ...के पियूष मिश्रा क्या .."तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया "के बाद क्या उससे बेहतर लिख पायेगे ..क्या प्रसून जोशी ....तारे जमीन के बाद उसी इंटेंसिटी को दोहरा पायेगे ....कंसिस्टेंसी कितनी मुश्किल हो जाती है न.....
तीन अलग कवि ..तीन अलग कविताएं ....तीन अलग सोच .......

1  पहली कविता महेन की ……

इससे तो बेहतर है
अनजान लोगों से बतियाया जाए कुछ भी
किताबों में घुसा लिया जाए सिर
एक के बाद एक चार-पांच फ़िल्में देख डाली जाएं
पूरी रात का सन्नाटा मिटाने के लिये
टके में जो साथ हो ले
ऐसी औरत के साथ काटी जाए दिल्ली की गुलाबी ठंडी शामें
गुलमोहर के ठूँठ के नीचे
या दोस्तों को बुला लिया जाए मौके-बेमौके दावत पर

तुम्हे प्यार करते रहना खुद से डरने जैसा है
और डर को भुलाने के लिये जो भी किया जाए सही है।

2  दूसरी कविता नन्दनी महाज़न  जी की है ......

रफूगर आने को है



दोनों हाथ उठा कर
एक बार फ़िर से मांगती हूँ
हे पहाड़ों पर बसने वाली चील
मेरे चाक जिग़र के टुकड़े लौटा दो !
तुम्हारे बच्चे
जी भी जायेंगे उसके बिना
तुम फ़िर बनोगी
हज़ार हज़ार बच्चों की माँ
और फ़िर
मैं जब भी दुआ पढूंगी
तो मेरे लब बोलेंगे
सातों आसमानों पर तुम्हारा राज़ हो जाए
ग़र ये कल होना है
तो मेरे परवरदीगार ये आज हो जाए ।

उस नेक इंसान के लिए
ये तो मैंने ही बुनी थी मुश्किलें
उससे घर माँगा
उससे एक वर माँगा
और जो लाल रंग तुम्हारी चोंच में लगा है
उसको अपने सर माँगा

उसको बेवफ़ा न कहो
उसने किया है एक वादा
कल रात कोई रफूगर आएगा
मेरे चाक जिगर को रफू कर जाएगा

हे आसमां की शहज़ादी
लौटा दो मेरे चाक जिगर के टुकड़े
कोई रफूगर आने को है ...


 3 तीसरी  कविता गौरव सोलंकी की है ...... 

कि घर है

 

शहीद होने की एक ज़रूरी सामाजिक प्रक्रिया में
मैं ग़ैरज़रूरी ढंग से फँस गया हूं
शर्मिन्दा हूं।

बिसलेरी की पुरानी बोतल की तरह,
जिसकी विप्लवी आत्मा को
तुमने रैपर की तरह छीला है निरंतर बेवज़ह,
तुम मुझे बार बार खाली करती हो
बूंद बूंद टप टप
और किसी सीले हुए पहाड़ी स्टेशन की टोंटी पर से
फिर भर लेती हो।

या कि तुम्हारे लगातार बेघर होने की प्रक्रिया में
मैं घर हूं
तुम्हारे सरहद होने की प्रक्रिया में पाकिस्तान ?

डर और अचरज मुझे
क्रमश: नींद और भूख की तरह होते हैं।
क्या मुझे चौंकते चौंकते
हो जाना है शहर की तरह कुत्ता
और दुम हिलानी है ?
हर दुतकारे जाने के बाद करना है
पुचकारे जाने का इंतज़ार
और वे सब लम्बी रातें भुलाकर – सच
जब मैं किसी अनजान ट्रेन में चढ़कर
हो जाना चाहता था लापता
किसी लम्बी खदान में पत्थर तोड़ने को उम्र भर
- कूं कूं करके खाने हैं ब्रेड और बिस्किट
और तुम्हारी ट्यूबलाइट सी नंगी टाँगों पर टाँगें रखकर
बेताब बिस्तर पर साथ सोना है ?

नींद भर अँधेरा है
और है राख में रेत
जिसमें मैं तुमसे कहता हूं कि घर है।
लौटेंगे।
WWVF23KW44VS

17 सुधीजन टिपियाइन हैं:

Udan Tashtari टिपियाइन कि

तीनों ही रचनाएँ बहुत ही बेशकीमती हैं..बहुत सुन्दरता से चुनाव किया है आपने. आपको साधुवाद इन्हें हमारे साथ बांटने का.

दिनेशराय द्विवेदी टिपियाइन कि

अद्वितीय रचनाएँ हैं. इन का बदल पैदा नहीं किया जा सकता।

डा० अमर कुमार टिपियाइन कि

.
धन्यवाद, अनुराग !
तुम्हारे चयन का कहना ही क्या ?
ये कवितायें इस सँकलन प्रयास की अनमोल धरोहर में गिनी जायेंगी !

Abhishek Ojha टिपियाइन कि

महेन की ये कविता तो मुझे भी अब तक याद है ! शब्द तो नहीं पर भावनाएं अब भी. आज ऋवाइंड हो गयी लाइनें !

कुश टिपियाइन कि

तीनो ही रचनाये निसंदेह प्रसंशनीय है.. शुक्रिया इन्हें यहाँ प्रस्तुत करने के लिए.. आपके चयन का एक और बार कायल हुआ.. शुक्र है बढती ब्लॉग संख्या में कुछ ऐसे भी है जो विरक्तता से बचाए रखने में सहायक है..

दीपक 'मशाल' टिपियाइन कि

3 SHRESHTH RACHNAON KO PADHWANE KE LIYE BAHUT BAHUT SHUKRIYA..
JAI HIND...

अपूर्व टिपियाइन कि

३ बेहतरीन कवि, ३ शानदार कविताएं ..क्या बात है..ऐसा रोज हो जाये तो पार्टी हो जाये..गौरव और नंदनी जी को पढ़ा था उनके ब्लॉग पर..आपके माध्यम से महेन जी की कलम से भी तअर्रुफ़ हो गये इस अद्भुत कविता के बहाने..और विषयों मे अलग-२ होते हुए भी इस कविता के बिम्ब और प्रतीक कितने सहधर्मी से लगते हैं गौरव जी की एक अन्य कविता के साथ..इस लिन्क पर
और एक अच्छे रचनाकार की पहचान होती है कि वह खुद को रिइन्वेंट करता रहता है..हमेशा बड़ी लकीर खींचने के प्रयास मे रत..सो ईवन पंकज मिश्रा से भी मुझे बहुत उम्मीदें हैं आगे..कि चमत्कृत करते रहेंगे..ब्डी लकीर खींच कर...
डॉक साब का शुक्रिया

सागर टिपियाइन कि

अच्छा निचोड़... तीनो पढ़कर आनंदित हुआ... सभी अपने अपने जगह श्रेष्ठ हैं... यह कार्य भी सराहनीय है....

Dr. Shreesh K. Pathak टिपियाइन कि

अनुराग साहब, teenon लोगों के फीड संजो लिए है मैंने....आभार....

कविता रावत टिपियाइन कि

Bahut achhi lagi rachnai. Kisi bhi rachnakar ki kavitaon mein vividhta ho sakte hai. Alag-alag prasthithi mein alag tarah ki kavita ho sakti hai, jaise hum ek jaisa hamesha nahi rahate hai. Aapka blog bahut achha laga. Sabke liye achha sochne mein hi khushi chupi hai.
Shubhkamnayen.

RAJ SINH टिपियाइन कि

वाह ! क्या चुनाव है ,क्या लगाव है .
मन ,दिमाग सब झकझोरती कवितायेँ .
धन्यवाद !

Padm Singh टिपियाइन कि

अस्तित्व को झकझोरती रचना .... आपका चुनाव काबिले तारीफ है

kshama टिपियाइन कि

Behtareen rachnaon se ru-b-ru karaya!

अजय कुमार टिपियाइन कि

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

shama टिपियाइन कि

Teen sashakt rachnaon se ru-b-ru karane ke liye tahe dilse shukriya!

Anonymous टिपियाइन कि

Excellent poetry

Shwet... टिपियाइन कि

अत्यन्त खूबसूरत और अंता:मन पर अंकित होने वाली कवितायेँ हैं। धन्यवाद संकलित करने और समक्ष प्रस्तुत करने के लिए।
अपने ब्लॉग का भी लिकं प्रस्तुत कर रहा हूँ। आपके आगमन की सुभेच्छा के साथ, साभार।
http://kavya-srijan.blogspot.in/

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(संकलक एवं योगदानकर्ता के निताँत व्यक्तिगत रूचि पर निर्भर सँग्रह !
आवश्यक नहीं, कि पाठक इसकी गुणवत्ता से सहमत ही हों )

उत्तम रचनायें सुझायें, या भेजे !

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