कुछ कविताएं ऐसी होती है जब लिखी जाती है तो जाने क्या सोचकर .पर जब सामने आती है तो कई लोगो की बन जाती है ..कभी कभी सोचता हूं ...के पियूष मिश्रा क्या .."तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया "के बाद क्या उससे बेहतर लिख पायेगे ..क्या प्रसून जोशी ....तारे जमीन के बाद उसी इंटेंसिटी को दोहरा पायेगे ....कंसिस्टेंसी कितनी मुश्किल हो जाती है न.....
तीन अलग कवि ..तीन अलग कविताएं ....तीन अलग सोच .......
पहली कविता महेन की ……
तीन अलग कवि ..तीन अलग कविताएं ....तीन अलग सोच .......
पहली कविता महेन की ……
इससे तो बेहतर है
अनजान लोगों से बतियाया जाए कुछ भी
किताबों में घुसा लिया जाए सिर
एक के बाद एक चार-पांच फ़िल्में देख डाली जाएं
पूरी रात का सन्नाटा मिटाने के लिये
टके में जो साथ हो ले
ऐसी औरत के साथ काटी जाए दिल्ली की गुलाबी ठंडी शामें
गुलमोहर के ठूँठ के नीचे
या दोस्तों को बुला लिया जाए मौके-बेमौके दावत पर
तुम्हे प्यार करते रहना खुद से डरने जैसा है
और डर को भुलाने के लिये जो भी किया जाए सही है।
दूसरी कविता नन्दनी महाज़न जी की है ......
अनजान लोगों से बतियाया जाए कुछ भी
किताबों में घुसा लिया जाए सिर
एक के बाद एक चार-पांच फ़िल्में देख डाली जाएं
पूरी रात का सन्नाटा मिटाने के लिये
टके में जो साथ हो ले
ऐसी औरत के साथ काटी जाए दिल्ली की गुलाबी ठंडी शामें
गुलमोहर के ठूँठ के नीचे
या दोस्तों को बुला लिया जाए मौके-बेमौके दावत पर
तुम्हे प्यार करते रहना खुद से डरने जैसा है
और डर को भुलाने के लिये जो भी किया जाए सही है।
दूसरी कविता नन्दनी महाज़न जी की है ......
रफूगर आने को है
दोनों हाथ उठा कर
एक बार फ़िर से मांगती हूँ
हे पहाड़ों पर बसने वाली चील
मेरे चाक जिग़र के टुकड़े लौटा दो !
तुम्हारे बच्चे
जी भी जायेंगे उसके बिना
तुम फ़िर बनोगी
हज़ार हज़ार बच्चों की माँ
और फ़िर
मैं जब भी दुआ पढूंगी
तो मेरे लब बोलेंगे
सातों आसमानों पर तुम्हारा राज़ हो जाए
ग़र ये कल होना है
तो मेरे परवरदीगार ये आज हो जाए ।
उस नेक इंसान के लिए
ये तो मैंने ही बुनी थी मुश्किलें
उससे घर माँगा
उससे एक वर माँगा
और जो लाल रंग तुम्हारी चोंच में लगा है
उसको अपने सर माँगा
उसको बेवफ़ा न कहो
उसने किया है एक वादा
कल रात कोई रफूगर आएगा
मेरे चाक जिगर को रफू कर जाएगा
हे आसमां की शहज़ादी
लौटा दो मेरे चाक जिगर के टुकड़े
कोई रफूगर आने को है ...
एक बार फ़िर से मांगती हूँ
हे पहाड़ों पर बसने वाली चील
मेरे चाक जिग़र के टुकड़े लौटा दो !
तुम्हारे बच्चे
जी भी जायेंगे उसके बिना
तुम फ़िर बनोगी
हज़ार हज़ार बच्चों की माँ
और फ़िर
मैं जब भी दुआ पढूंगी
तो मेरे लब बोलेंगे
सातों आसमानों पर तुम्हारा राज़ हो जाए
ग़र ये कल होना है
तो मेरे परवरदीगार ये आज हो जाए ।
उस नेक इंसान के लिए
ये तो मैंने ही बुनी थी मुश्किलें
उससे घर माँगा
उससे एक वर माँगा
और जो लाल रंग तुम्हारी चोंच में लगा है
उसको अपने सर माँगा
उसको बेवफ़ा न कहो
उसने किया है एक वादा
कल रात कोई रफूगर आएगा
मेरे चाक जिगर को रफू कर जाएगा
हे आसमां की शहज़ादी
लौटा दो मेरे चाक जिगर के टुकड़े
कोई रफूगर आने को है ...
तीसरी कविता गौरव सोलंकी की है ......
कि घर है
मैं ग़ैरज़रूरी ढंग से फँस गया हूं
शर्मिन्दा हूं।
बिसलेरी की पुरानी बोतल की तरह,
जिसकी विप्लवी आत्मा को
तुमने रैपर की तरह छीला है निरंतर बेवज़ह,
तुम मुझे बार बार खाली करती हो
बूंद बूंद टप टप
और किसी सीले हुए पहाड़ी स्टेशन की टोंटी पर से
फिर भर लेती हो।
या कि तुम्हारे लगातार बेघर होने की प्रक्रिया में
मैं घर हूं
तुम्हारे सरहद होने की प्रक्रिया में पाकिस्तान ?
डर और अचरज मुझे
क्रमश: नींद और भूख की तरह होते हैं।
क्या मुझे चौंकते चौंकते
हो जाना है शहर की तरह कुत्ता
और दुम हिलानी है ?
हर दुतकारे जाने के बाद करना है
पुचकारे जाने का इंतज़ार
और वे सब लम्बी रातें भुलाकर – सच
जब मैं किसी अनजान ट्रेन में चढ़कर
हो जाना चाहता था लापता
किसी लम्बी खदान में पत्थर तोड़ने को उम्र भर
- कूं कूं करके खाने हैं ब्रेड और बिस्किट
और तुम्हारी ट्यूबलाइट सी नंगी टाँगों पर टाँगें रखकर
बेताब बिस्तर पर साथ सोना है ?
नींद भर अँधेरा है
और है राख में रेत
जिसमें मैं तुमसे कहता हूं कि घर है।
लौटेंगे।
WWVF23KW44VS
17 सुधीजन टिपियाइन हैं:
तीनों ही रचनाएँ बहुत ही बेशकीमती हैं..बहुत सुन्दरता से चुनाव किया है आपने. आपको साधुवाद इन्हें हमारे साथ बांटने का.
अद्वितीय रचनाएँ हैं. इन का बदल पैदा नहीं किया जा सकता।
.
धन्यवाद, अनुराग !
तुम्हारे चयन का कहना ही क्या ?
ये कवितायें इस सँकलन प्रयास की अनमोल धरोहर में गिनी जायेंगी !
महेन की ये कविता तो मुझे भी अब तक याद है ! शब्द तो नहीं पर भावनाएं अब भी. आज ऋवाइंड हो गयी लाइनें !
तीनो ही रचनाये निसंदेह प्रसंशनीय है.. शुक्रिया इन्हें यहाँ प्रस्तुत करने के लिए.. आपके चयन का एक और बार कायल हुआ.. शुक्र है बढती ब्लॉग संख्या में कुछ ऐसे भी है जो विरक्तता से बचाए रखने में सहायक है..
3 SHRESHTH RACHNAON KO PADHWANE KE LIYE BAHUT BAHUT SHUKRIYA..
JAI HIND...
३ बेहतरीन कवि, ३ शानदार कविताएं ..क्या बात है..ऐसा रोज हो जाये तो पार्टी हो जाये..गौरव और नंदनी जी को पढ़ा था उनके ब्लॉग पर..आपके माध्यम से महेन जी की कलम से भी तअर्रुफ़ हो गये इस अद्भुत कविता के बहाने..और विषयों मे अलग-२ होते हुए भी इस कविता के बिम्ब और प्रतीक कितने सहधर्मी से लगते हैं गौरव जी की एक अन्य कविता के साथ..इस लिन्क पर
और एक अच्छे रचनाकार की पहचान होती है कि वह खुद को रिइन्वेंट करता रहता है..हमेशा बड़ी लकीर खींचने के प्रयास मे रत..सो ईवन पंकज मिश्रा से भी मुझे बहुत उम्मीदें हैं आगे..कि चमत्कृत करते रहेंगे..ब्डी लकीर खींच कर...
डॉक साब का शुक्रिया
अच्छा निचोड़... तीनो पढ़कर आनंदित हुआ... सभी अपने अपने जगह श्रेष्ठ हैं... यह कार्य भी सराहनीय है....
अनुराग साहब, teenon लोगों के फीड संजो लिए है मैंने....आभार....
Bahut achhi lagi rachnai. Kisi bhi rachnakar ki kavitaon mein vividhta ho sakte hai. Alag-alag prasthithi mein alag tarah ki kavita ho sakti hai, jaise hum ek jaisa hamesha nahi rahate hai. Aapka blog bahut achha laga. Sabke liye achha sochne mein hi khushi chupi hai.
Shubhkamnayen.
वाह ! क्या चुनाव है ,क्या लगाव है .
मन ,दिमाग सब झकझोरती कवितायेँ .
धन्यवाद !
अस्तित्व को झकझोरती रचना .... आपका चुनाव काबिले तारीफ है
Behtareen rachnaon se ru-b-ru karaya!
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
Teen sashakt rachnaon se ru-b-ru karane ke liye tahe dilse shukriya!
Excellent poetry
अत्यन्त खूबसूरत और अंता:मन पर अंकित होने वाली कवितायेँ हैं। धन्यवाद संकलित करने और समक्ष प्रस्तुत करने के लिए।
अपने ब्लॉग का भी लिकं प्रस्तुत कर रहा हूँ। आपके आगमन की सुभेच्छा के साथ, साभार।
http://kavya-srijan.blogspot.in/
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
कुछ भी.., कैसा भी...बस, यूँ ही ?
ताकि इस ललित पृष्ठ पर अँकित रहे आपकी बहूमूल्य उपस्थिति !