
12 May 2010
दिनांक : Wednesday, May 12, 2010 | 12 सुधीजन टिपियाइन हैं | Gulzar, गुलज़ार, नज़्म
तेरी आवाज़, को काग़ज़ पे रखके, मैंने चाहा था कि पिन कर लूँ........


गुलज़ार पर कुछ लिखना जैसे मन के कितने कोनो से गुजरना है .....कितनी जिंदगियो को रिवाइंड करना है .....वो मेरे लिए उस कोर्स की किताब की माफिक है जिसे जितनी बार पढ़ा जाये.भीतर से
हर बार नया कुछ निकाल देती है ........
इक नज़्म की चोरी इक नज़्म मेरी चोरी कर ली कल रात किसी ने
यहीं पड़ी थी बालकनी में,
गोल तिपाई के ऊपर थी!
विस्की वाले ग्लास...
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