
20 April 2011
दिनांक : Wednesday, April 20, 2011 | 7 सुधीजन टिपियाइन हैं | डा. अमर कुमार, मुद्रण से, विद्रूपता का सच
जला है जिस्म जहाँ


राही मासूम रज़ा को पढ़ना अपने आप में एक तज़ुर्बा तो है, ख़ास तौर से तब जबकि उनके बयान-ए-अफ़साना का अँदाज़ टोपी शुक्ला, हिम्मत जौनपुरी,आधा गाँव से बिल्कुल अलहदा हो । हालही में उनका उपन्यास ’ दिल एक सादा कागज़ पढ़ा, कई कई जगह उनके अँदाज़े-बयाँ की खूबसूरती से ठिठक गया । मन बनाया कि इसे आप सब से साझी ज़रूर करूँगा, पर वह सारे टुकड़े एक साथ यहाँ परोसना मुमकिन...
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लेबल.चिप्पियाँ
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मानवता की अनुत्तरित जिज्ञासा
नासदासीन नो सदासीत तदानीं नासीद रजो नो वयोमापरो यत किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद गहनं गभीरम सृष्टि सृजन : ऋग्वेद (१०:१२९ )
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डा. अनुराग आर्य
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