यद्यपि इन सँकलित चित्रों का ब्लागपोस्ट से कोई सरोकार नहीं है, फिर भी इन्हें एक स्थान पर सँजो रखने की गरज़ से बटोरा है । यदि हमारी अपनी पीढ़ी को यह चित्र विचित्र किन्तु सत्य लग सकते हैं, तो आने वाले कई दशकों के बाद इन्हें देखना रोमाचँक कम लोमहर्षक अधिक होगा । क्या पता, अपने विनाश का ताना बाना बुन रही हमारी सभ्यता इन चित्रों को साबूत रहने भी देगी ? तब इन्हें देख एक सिहरन होगी.. क्या हम ऎसे थे ?
( अधिकाँश चित्र लँदन म्यूजियम के वेबसाइट और जिन अन्य सूत्रों से सँकलित हैं, उन सबका आभार )
वायसराय हाउस ( अब राष्ट्रपति भवन ) और पार्लियामेन्ट बना ही था
तब शेरशाह सूरी मार्ग ( अब का जी०टी० रोड ) पक्का न हुआ था
लेकिन तब की राजधानी कलकत्ता में सोनागाछी की नाच कन्यायें आबाद हो चुकी थीं
अपनी दिल्ली भी तो तब ज़ामा मस्ज़िद के आसपास ही सिमटी हुई थी, नई दिल्ली बसना शुरु हुई थी
राजे रजवाड़े निरीह जन्तुओं के आखेट के अपने शौर्य को ही सहेजे फिरते थे
अँग्रेज़ बहादुर की कृपा से बने नवधनाढ्यों और अभिजात वर्ग का एकमात्र श्रम आमोद प्रमोद ही था
यह और बात थी कि, तब हम ग़ुलाम थे , जैसे दासता ही हमारी नियति थी
1913 तक तो हमारे शासन और शोषण की बागडोर सुदूर लन्दन से हवाई डाक द्वारा चलाई जाने लगी
7 सुधीजन टिपियाइन हैं:
बड़ा रोचक संकल्न रहा...संग्रहणीय है!! आपका बहुत आभार.
आज आपका जन्म दिन है.
जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
जय हो! जन्मदिन मुबारक हो!
संकलन बहुत कीमती है। दुनिया लगातार बदलती है मौसम भी और वायरस भी।
जन्मदिन पर बहुत बहुत बधाइयाँ।
अद्भुत संकलन ..!!
Fantastic collection, congratulation !!!
bahut sundar.
pataa nahin tab ke is hisse ko kyaa kahen INDIA ya BHARAT?
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
कुछ भी.., कैसा भी...बस, यूँ ही ?
ताकि इस ललित पृष्ठ पर अँकित रहे आपकी बहूमूल्य उपस्थिति !