सबसे पहले - श्री राजशेखर रेड्डी हमारे बीच न रहे । यहाँ कोई भी शरीर स्थायी परमिट लेकर नहीं आता है, तो उसके न रहने का शोक क्यों ? जिस तरह से उनको विदा होना पड़ा, वह वाकई दुःखद है । किसी भी राजनैतिक पार्टी के पर्ति कोई विशेष प्रतिबद्धता न रखते हुये भी मैं उनका प्रशँसक रहा । उनकी डाउन टू अर्थ कार्यशैली मुझे यदा कदा अचँभित तो करती ही थी, साथ ही वह मेरे दूर के मौसेरे भाई भी थे { डाक्टरों के प्रति लोग जैसी छवि बनाते जा रहे हैं, उसे देख उनके चिकित्सा स्नातक होने के नाते मैंनें स्वतः ही उनसे ऎसा रिश्ता जोड़ लिया था } परमपिता उनको सदगति प्रदान करे ।
इस दुःख को हमारे इलेक्ट्रोनिक मीडिया के व्यवहार ने और भी गाढ़ा कर दिया । चैनलों पर कल रात्रि से लगातार चल रही उत्तेजना , और एक एक्साइटमेन्ट ? का अँत हुआ । कमसिन बालायें जैसे भाड़े पर आँखें घुमाने और हाथ नचाने से मुक्ति पा गयीं । वह मिलेंगे.. वह नहीं मिलेंगे.. वह ज़िन्दा हैं.. वह घायल और अचेत हैं.. वह ज़ँगल के नज़ारे देखने को कहीं रुक गये हैं... या वह नक्सलियों के हाथों में हैं .. जैसे तमाम सवालात उनको परेशान जो करते रहे । उनके अवसान की पहली ख़बर कौन परोसे, यह उतावलापन स्पष्ट दिख रहा था ! आजतक वाले तो, अगला मुख्यमँत्री कौन, की मुहिम में लग पड़े
सर्वप्रथम रहने की दौ्ड़ इस हद तक तक़लीफ़देह है, कि एक साहब नें वाईकेपिडीया पर सायँ 6.30 या 7.00 बजे ही उनकी मृत्यु दर्ज़ कर डाली ( मैंने यह रात्रि में 9.45 के आसपास ही देखा )
पिछली पोस्ट पर, अभिषेक ओझा की टिप्पणी ने जैसे एक ट्रिगर-इफ़ेक्ट कर दिया हो क्योंकि मुझे यह धुँधला सा याद था कि, बुनो कहानी पर जीतेन्द्र चौधरी ने मीडिया के ऎसे प्रहसन को ’ कवर स्टोरी : घासीराम की भैंस ’ में बड़े अनोखे अँदाज़ में चित्रित किया था । जिसे तत्कालीन फ़ुरसतिया ’अनूप शुक्ल ’ने अपने गाँव ढक्कनपुरवा से एक दूधिये की भैंस भाग जाने पर एक चलताऊ चैनल चर्चा पर दो दिन पहले ही ब्लागित किया था और इसके कारक बने । इसी विषय की कड़ी को डा पद्मनाभ मिश्र ’ आदि यायावर ’ ने फुल्ली फालतू चैनल का कवर स्टोरी: घासी राम की भैँस पर और भी आगे बढ़ाया । वह अब सक्रिय न सही, पर नेट पर तो मौज़ूद ही हैं । तो.. लीजिये, पढ़िये
फुल्ली फालतू चैनल का कवर स्टोरी : घासी राम की भैँस
पिछले अँक मे आपने पढा: यहाँ क्लिक कीजिए. घासी राम की भैँस ढक्कनपुरवा गांव से उस समय रस्सी तोडकर तबेले से भाग गयी जब घासी राम अपने दोस्त कल्लू के शवयात्रा मे गया था. टी.आर.पी. महिमा के लिए इसको फ़ुल्ली फ़ालतू नामक एक टी.वी. चैनल पर कवर स्टोरी बना कर दिखाया जा रहा था. चैनल के मालिक गुल्लु को इस खबर से बहुत ज्यादा टी.आर.पी. और एस.एम.एस से बहुत पैसा जोगाड़्ने की उम्मीद थी. कातिल अदाँए वाली निधि खोजी, ओवरटाइम का पैसा नही माँगने वाला टप्पू सँवाददाता और समाचार वाचिका रुपाली अभी-अभी हुए ब्रेक के बाद लौटी हैँ. सुन्दरी नामक भैँस को कवर स्टोरी बनाने के लिए उसको तालाब मे तैराकी का प्रैक्टिस छोडवाकर फुल्ली-फालतू चैनल के स्टूडियो मे रखा गया है. अब आगे पढिए...
ब्रेक के बाद चैनल स्टूडियो मे कुछ नए लोग आते हैँ. टप्पू ने अपने विश्वस्त सूत्रो से पहले ही पक्का कर लिया था कि स्टूडियो मे घासी-राम के भैँस की कहानी पर अपना राय देने वाले सारे लोग अपने अपने क्षेत्र के एक्स्पर्ट है जिनका वर्णन निम्न्लिखित हैँ.
जोखन डाक्टर: जोखन डाक्टर ग्यारह साल पहले १३ लाख मे एम.बी.बी.एस. की डीग्री पढ कर आए थे. शुरु के आठ साल तो चूँगी पर बैठ कर आदमी का डाक्टर बने रहे. आदमी का डाक्टरी तो चली नही गलत दवा देने से पाँच लोगो के मौत का मुकदमा हो गया. तब से अकल ठीकाने आई और फिलहाल पिछले तीन साल से जानवर का डाक्टर बने पडे हैँ. बुजूर्गोँ ने समझाया इसमे रिस्क नही है.
सेवकराम साइको: पहले इनका नाम था सेवकराम शर्मा. पिछले बीस साल से साइकेट्रिक डाक्टर हैँ और अपना बिजिनेस बढाने के लिए अपने नाम के आगे साइको लगाया है. गल्लू से पहुत पहले इनका करार हुआ था. इनको टी.वी. पर लाइव दिखाने पर सेवकराम साइको गल्लू को १० हजार रुपैया देगा.
कालू प्रसाद "देशप्रेमी": आजकल के सत्तारुढ पार्टी का एम.एल.ए और अपने पार्टी का प्रवक्ता. जब से पिछली सरकार ने इनके उपर लगा बलात्कार का आरोप सी.बी.आई से जाँच करने को कहा ये अपने नाम के आगे देशप्रेमी जोड लिया. अभी तो सत्तारुढ़ पार्टी मे हैँ लेकिन विपक्ष कहती है कि लोगों का अटेन्सन दूर करने के लिए अपना नाम के आगे देशप्रेमी लगाए हैँ.
टी.वी.स्क्रीन पर फुल्ली फालतू चैनल फिर से आता है. रुपाली अपने बालोँ की लटो को एक बार फिर से झटकती है और और बोलने लगती है.
रुपाली: दर्शकोँ हम फिर से हाजिर हैँ घासीराम के सुन्दरी का एक्सक्लूसिव रिपोर्ट लेकर. जैसा कि पहले बताया जा चुका है, हम दूनिया मे पहली बार इस खबर को प्रसारित कर रहे हैँ कि आखिर घासीराम की सुनदरी भैँस रस्सी तोडकर गयी किधर. जो लोग अभी-अभी टी.वी आन किए है उनके लिए मै बता दूँ कि आज सुबह सुबह ढकनपुरबा गाँव के श्री घासीराम जी जी सुन्दरी नाम की भैँस रस्सी तोडकर भग गई है. हम अपने इस चैनल पर एक्स्क्लूसिवली रिपोर्ट दिखा रहे हैँ कि आखिर सुन्दरी को वह कौन सा बात खराब लग गई जिससे वह घर छोडकर चली गई. क्या उसका किसी से चक्कर था ? या वह किसी मानसिक प्रताडना का शिकार थी. घासीराम के बातोँ से तो यह नही लगता है कि उसने सुन्दरी को भगाया है. आज इसी बात पर चर्चा करने के लिए हमने कुछ एक्स्पर्ट को बुलाया है. आज हमारे साथ मौजूद हैँ, एक जाने माने पशु चिकित्सक श्री जोखन डाक्टर, प्रसिद्ध मनोवैग्यानिक श्री सेवक साइको, और ढकनपुरवा गाँव के स्थानीय विधायक श्री कालू प्रसाद "देशप्रेमी". और हमारे सँवाददाता निधि खोजी मौजूद हैँ घटनास्थल पर. हम समय समय पर दर्शको का राय भी लेते रहेँगे. आप अपना राय टाइप करके हमे भेजेँ. हमारा नम्बर है ४५४७६. तो हम बिना समय गँवाए सीधे मुद्दे पर आते हैँ और पहला सवाल करते हैँ हमारे आज के एक्स्पर्ट सेवकराम साइको जी से.
रुपाली: सेवकराम जी हमारे स्टूडियो मे आपका स्वागत है. आप तो पिछले बीस साल से मनोवैग्यानिक रहे हैँ. आपको क्या लगता है. सुन्दरी की मान्सिक स्थिति कैसी रही होगी. वह घासीराम का घर छोडकर क्योँ भाग गयी.
सेवकराम साइको: रुपाली' जी मुझे अपने स्टूडियो मे बुलाने के लिए धन्यावाद. मुझे तो सुन्दरी का केस पुरा साइकोलोजिकल लगता है. और लगता है कि वह "साइक्लोजिकल डिसओर्डर सिन्ड्रोम" से ग्रसित है. इस तरह के बीमारी मे भैँस क्या आदमी भी अपना घर छोडकर चला जाता है और भी बिना कुछ बताए. अभी हाल मे ही एक औरत अपने पति को छोडकर अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी और उसको जाँच करने के बाद पता चला कि वह भी इसी सिन्ड्रोम से ग्रसित थी.
कालूप्रसाद देशप्रेमी: ( इन सभी का बात काटते हुए बीच मे ही बोल उठा.) रुपाली जी, इसमे मुझे किसी बिमारी का कोई बात नही लगता है. यह तो विपक्षी पार्टी का काम है. घासीराम के भैँस को भगाकर उसमे अल्पसँख्यक वर्ग का नाम बिगाडने की साजिस है. हम यह काम नही होने देँगे. हमारी सेकुलर पार्टी देश मे इस तरह के कम्यूनल पार्टी का पर्दा फास करेँगे.
तभी निधि खोजी का खबर आता है और बीच मे ही रुपाली सबको चुप कराते हुए बोलती है.
रुपाली: दर्शकोँ हमारी संवाददाता अभी ढकनपुरबा गाँव मे मौजूद है. निधि क्या आप मेरा आवाज सुन रही हैँ. क्या माहुल है वहाँ का?
निधि (अपने कान का टेपा सही करते हुए): जी रुपाली पूरा गाँव सुन्दरी के जाने से गमगीन है. पडोस का भैँसा अभी तक चारा नही खाया है. घासी-राम का रो-रोकर हालत खराब है. लेकिन अभी तक स्पष्ट नही हो पाया है कि रुपाली आखिर भागी क्योँ. रुपाली के आस मे सब लोग रास्ता देख रहे हैँ. लोग बोलते हैँ मेरी रुपाली-मेरी रुपाली...
रुपाली: (अचानक घबराकर चौँक जाती है और धीरे से फुसफुसाती है) अरे निधि रुपाली नही सुन्दरी...सुन्दरी... (और भी धीरे से-- स्टूपिड नोन्सेन्स)
निधि (एक ही बार मे स्टूपिड शब्द समझने के बाद फिर से अपने बालोँ को झटकते हुए): जी हाँ रुपाली नही माफ कीजिएगा हम निधि की बात ...ओह सोरी.. घासीराम की भैँस सुन्दरी की बात कर रहे थे. अपने पास खडे हुए यूवक को पूछते हुए. हाँ तो आप मुझे बताएँ कि सुन्दरी क्योँ भागी ?
यूवक (कैमरा के बजाए निधि को देखते हुए): वो क्या है मैडम, हम सुबह सुबह मैदान को गए थे. देखो तो उधर से दो भैँस कहीँ जा रहे थे. हमे पक्का विश्वास है कि वह सुन्दरी ही रही होगी. पिछले छओ महीना से उसका पडोस के भैँसे से जबरदस्त चक्कर रहा है. हम तो कई बार समझाए घासी राम को लेकिन उ माने तब ना. जान्बुझ के पडोस के भैसे के सामने मे बान्धता था. ससुरा घासी-राम को बुढापे मे जवानी सुझत रहल है. भैसन के प्रेम सम्बन्ध बनाबे मे मदद करत रहल है. मैने मना किया तो माना नही, अब भुगतो ससूरा, भैस भाग गई ना.
कालू-प्रसाद "देशप्रेमी" (बीच मे ही रुपाली को रोकते हुए): इसमे जरूर विपक्षी पार्टी का हाथ रहा होगा. हमारे क्षेत्र मे से भैस को भगवाकर शान्ति भँग करना चाहते हैँ. हम सेकुलर हैँ. ऐसे कम्यूनल पार्टी को हम नही बक्शेँगे.
बीच मे ही रुपाली सबको रोकते हुए बोलती है. देशप्रेमी जी हम फिर से वापस होते हैँ लेकिन इस छोटे से ब्रेक के बाद. और दौड्कर रेस्ट रूम चली जाती है.
डा० पद्मनाभ मिश्र बनाम आदि यायावर
पोस्ट आभार : फुल्ली फालतू चैनल / मेरा बकवास / ब्लागपोस्ट 3 नवम्बर, 2007 / आलेख आदि यायावर
सँदर्भित लिंक
पोस्ट : एक चलताऊ चैनल चर्चा / फ़ुरसतिया / ब्लागपोस्ट 3 दिसम्बर 2006 / अनूप शुक्ल
पोस्ट : कवर स्टोरी घासीराम की भैंस / बुनो कहानी / ब्लागपोस्ट 5 दिसम्बर 2006 / जीतेन्द्र चौधरी
3 सुधीजन टिपियाइन हैं:
फुल्ली फालतू, वाकई फुल्ली फालतू चैनल लेकिन काम का मजेदार ब्लाग।
यह स्टोरी सच्ची मुच्ची की लगती है
बढ़िया
हमारा पुराना जाना है.:) आभार इसे यहाँ तक लाकर हमें वहाँ पहुँचाने का.
रेड्डी जी का निधन अति दुखद रहा. श्रृद्धांजलि!!
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
कुछ भी.., कैसा भी...बस, यूँ ही ?
ताकि इस ललित पृष्ठ पर अँकित रहे आपकी बहूमूल्य उपस्थिति !