at-hindi-weblog

छितरी इधर उधर वो शाश्वत चमक लिये
देखी जब रेत पर बिखरी अनाम सीपियाँ
मचलता मन इन्हें बटोर रख छोड़ने को
न जाने यह हैं किसका इतिहास समेटे

पोस्ट सदस्यता हेतु अपना ई-पता भेजें

9 September 2009

मज़बूत होता जाता रिश्ता

Technorati icon

" शारीरिक जीवन के इस कैदखाने में आने से पहले हम कहाँ थे और क्या थे ? "
" ये समझदार, सँज्ञाशील और शरीर में  बेचैन रहने वाली आत्मायें हमारे शरीर में आने से पहले कहाँ थीं और क्या थीं ? इससे पहले कि ज़माना हमें निरर्थक आवाज़ बना कर दुनिया में लाया, हम किस सँतोष की साँस ले रहे थे ? "

" हमारे प्राण इन स्वरूपों में बदलने से पहले किस स्थिति में थे ? "
" सपनों की दुनिया में बोलती हुई यह जागृति, विचारों से सजा यह चिंतन, यह आनन्द और दुःख, प्रेम और घृणा से बँधी हुई अभिलाषायें माताओं के पेट में ही पैदा हुई या आकाश के वायुमँडल में ? "
"क्या इससे पहले की आकाँक्षा हमें जीवन की गोद में ले आई, हम कुछ भी न थे ? "

होश सँभालते ही मैंने यह सवाल अपनी आत्मा से पूछे । मेरी आत्मा ने इन सवालों के ज़वाब कुछ ऎसे सँदिग्ध वाक्यों में दिये, जो मेरी समझ से परे थे । मेरा चिन्तन उन वाक्यों को एक गहरी ख़ामोशी की तरफ़ ले गया, जिस तरफ़ बरफ़ के टुकड़े पानी में गिर कर पानी हो जाते हैं ।

gibranकल  एक  नयी  घटना  मेरे  सामने  आई, जो  अदृश्य जगत के भेद मुझ पर खोल देती है । यह घटना मेरे कल्पनालोक को उस ज़माने के पास ले गयी जब मेरा वाह्य शरीर प्रकट नहीं हुआ था । मैंने एक आदमी को  देखा, जो  अपनी आत्मा के सँबन्ध में कुछ बता रहा था । उसके शब्दों ने मुझ पर ऎसा ज़ादू कर दिया कि मेरे सीमित चिंतन और अल्पबुद्धि का वह बारीक रिश्ता और मज़बूत होने लग पड़ा । 


इस अँश का अँग्रेज़ी से अनुवाद : डा. अमर कुमार


अब ब्लागर पर प्रकाशित ज़िब्रान की एक लघुकथा

  • सच्चा प्यार

–उसने पुरुष से कहा, ''मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ।''
पुरुष ने कहा, ''मैं भी तुम्हारा प्रेम पाने को लालायित रहा हूं।''
स्त्री ने कहा, ''लगता है तुम मुझे नहीं चाहते।''
सुनकर आदमी ने ध्यान से उसकी ओर देखा, पर कहा कुछ भी नहीं।
इस पर वह औरत चीख पड़ी, ''मुझे तुमसे नफरत है।''
पुरुष ने कहा, ''मेरी दिली इच्छा है कि किसी तरह तुम्हारी नफरत ही पा सकूँ।''

    आलेख-अँश आभार :

कथाकार / सुकेश साहनी / ब्लागपोस्ट 16 मई 2008 / खलील ज़िब्रान:जीवन और लघुकथायें

    2 सुधीजन टिपियाइन हैं:

    अपूर्व टिपियाइन कि

    अद्भुत!!
    खलील ज़िब्रान का पूरा साहित्य उस शाश्वत रह्स्य की परतों को खोलने पर केन्द्रित रहा..यह खूबसूरत कथा भी उसका अपवाद नही...
    हिंदी मे पढ़वाने के लिये धन्यवाद

    इष्ट देव सांकृत्यायन टिपियाइन कि

    उम्दा. शुक्रिया.

    लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...

    आपकी टिप्पणी ?


    कुछ भी.., कैसा भी...बस, यूँ ही ?
    ताकि इस ललित पृष्ठ पर अँकित रहे आपकी बहूमूल्य उपस्थिति !

    इन रचनाओं के यहाँ होने का मतलब
    अँतर्जाल एवं मुद्रण से समकालीन साहित्य के
    चुने हुये अँशों का अव्यवसायिक सँकलन

    (संकलक एवं योगदानकर्ता के निताँत व्यक्तिगत रूचि पर निर्भर सँग्रह !
    आवश्यक नहीं, कि पाठक इसकी गुणवत्ता से सहमत ही हों )

    उत्तम रचनायें सुझायें, या भेजे !

    उद्घृत रचनाओं का सम्पूर्ण स्वत्वाधिकार सँबन्धित लेखको एवँ प्रकाशकों के आधीन
    Creative Commons License
    ThisBlog by amar4hindi is licensed under a
    Creative Commons Attribution-Non-Commercial-Share Alike 2.5 India License.
    Based on a works at Hindi Blogs,Writings,Publications,Translations
    Permissions beyond the scope of this license may be available at http://www.amar4hindi.com

    लेबल.चिप्पियाँ
    >

    डा. अनुराग आर्य

    अभिषेक ओझा

    • सरल करें! - बचपन में किसी बात पर किसी को कहते सुना था – “अभी ये तुम्हारी समझ में नहीं आएगा। ये बात तब समझोगे जब एक बार खुद पीठिका पर बैठ जाओगे।” यादों का ऐसा है कि क...
      2 years ago
    • तुम्हारा दिसंबर खुदा ! - मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम दोनो...
      4 years ago
    • मछली का नाम मार्गरेटा..!! - मछली का नाम मार्गरेटा.. यूँ तो मछली का नाम गुडिया पिंकी विमली शब्बो कुछ भी हो सकता था लेकिन मालकिन को मार्गरेटा नाम बहुत पसंद था.. मालकिन मुझे अलबत्ता झल...
      9 years ago

    भाई कूश