पिछले दिनों, करीब दो-ढाई माह पहले एक फ़ीचर पढ़ा था, “ अफ़गानिस्तान में फँसा अभिमन्यु – अमेरिका “ ! हालाँकि इसमें सामयिक वस्तुस्थितियाँ पूरी ईमानदारी से बयान की गयीं थी, पर मुझे इस फ़ीचर के शीर्षक में अभिमन्यु का होना नागवार गुज़रा था । हठात मुझे बरसों पहले एक कविता याद आयी, “ अमेरिका के राश्ट्रपति के मज़े “ उसके शब्द भले ही मानस से विस्मृत हो गये थे, पर अपने भाव के साथ उस कविता का पूरा प्रभाव मुझ पर अरसे तक बना रहा । वह सब अनायास ही ताज़ा हो आया, पुनः पढ़ने की चाह हुई !
और… जैसा कि होता है, इस कविता को पुनः पढ़ने की चाह एक बेचैनी में बदल गयी । साहित्यानुराग जब व्यसन बन जाये, तो किताबों से अटी आलमारियाँ पुराने सँदर्भों को तलाशने में आपके छक्के छुड़ा देती हैं । टुकड़ों टुकड़ों में कई दिनों के बाद कुछ सफ़हों पर बरामद हुये ’ मज़े करते हुये अमेरिका के राष्ट्रपति ’ ! तेजी से बदलते हुये घटनाक्रम में भी अब तक यह रचना अपनी प्रासँगिकता को पूरी तरह से बखूबी जी रही है ।
अमेरिका का राष्ट्रपति होने के बड़े मजे हैं
इसे इस तरह भी कहा जा सकता है
यदि किसी देश का राष्ट्रपति होने के मजे हैं
तो वह बस अमेरिका का राष्ट्रपति होने में हैं
या इस तरह भी यदि कहीं किसी राष्ट्रपति के
मजे है तो वह बस अमेरिका के हैं
अमेरिका के राष्ट्रपति की क्या यह कोई कम मजेदारी है
कि वह जब चाहे किसी छोटे बड़े देश को
अपने सामने कान पकड़कर उठक बैठक लगवा सकता है
यारी यारी में किसी भी मित्र देश के साथ वह
गर्दन में बांह डालकर चलते हुए
जरा सी बात पर उसकी गर्दन दबा सकता है
अपने पैरों पर दौड़ने की कोशिश में जुटे किसी भी देश की
गति में चुपके से मारकर टंगड़ी उसे मुंह के भर धड़ाम से
जमीन पर गिरने के लिये कर सकता है विवश
उसके क्या मजे हैं कि वह किसी भी देश का
शासन संभालने के लिए अपनी छाया भेज सकता है
और उस तरह अमेरिका का राष्ट्रपति
उस देश का भी राष्ट्रपति हो सकता है
वह कभी भी संयुक्त राष्ट संघ पहुंच कर पीछे से
महासचिव के सिर पर धप्पा मारकर छुप सकता है
जरूरतमंदों के लिए मदद भरकर आगे बढ़ चुके
टकों के पहियों की बीच रास्ते में हवा निकाल सकता है
कभी भी अंतराष्टीय मुद्रा कोष का स्ट्राँग रूम खुलवा कर
उसमें रखे पैसे गिन सकता है विश्व बैंक के दरवाजे पर
ताला लटका कर उसकी चाबी अपनी जेब में रख सकता है
और तो और इतने सबके बाद वह अंगूठे से अपनी नाक
उठा कर अपना हाथ नचाते हुए स्टेचू ऑफ लिबर्टी के पास
खड़ा हो कर वह सबको अपनी जीभ चिढ़ा सकता है
अमेरिका के राष्ट्रपति होने के जो मजे है उनमें से
एक मजा ये भी है कि किसी उम्र में उसका चेहरा
प्लेब्वाय के मुख पृष्ठ पर छपने लायक बना रहता है
उसके पुरूषार्थ के धब्बे उसके दफतर की युवा
महिला कर्मचारियों के अधोवस्त्रों पर सगर्व पाये जाते हैं
वह खुद नियमों कानूनों को नहीं मानता तो
उसके बच्चे भी कुछ नहीं सीख पाते उससे और इस वजह से
अक्सर सुधारगृहों में सजा भुगतते सुधरते पाये जाते है
यह भी कितना मजेदार है कि अमेरिका के राष्ट्रपति का घर
सुधारगृह के स्तर का भी नहीं है
उसके इतने मजे हैं कि उसे इस बात से
कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई उससे कितनी नफरत करता है
उसके चाहने भर से किसी को भी उससे
उसके प्रति अपनी नफरत के बराबर प्रेम या
अपने प्रेम के बराबर नफरत करनी पड़ सकती है
न चाहते हुए भी अपने बच्चों को
अ से अमेरिका ब से ब्रिटेन यह वर्णमाला पढ़ाने
के लिये होना पड़ सकता है लाचार
मजे-मजे वह जब चाहे पेन्टागन की बनी अपनी
एक ऐसी कार जिसके दरवाजों से, दोस्ता और दुश्मन
दोनों की तरह बाहर निकलने की सुविधा है,
वह अपने मूँछ पर ताव देता बाहर निकल सकता है
वह अपने ही पैदा किये दुश्मन को मारने अपनी गेंद ढूंढते
जिद्दी बच्चे की तरह किसी भी देश को खंगाल सकता है
वह वारिसों को ही अपनी विरासत लूटने के लिये उकसा सकता है
वह वियतनाम को अपने सिर की तरह खुजा सकता है
कंबोदिया को नोच सकता है ब्रिटेन की तरह
वह अपने इतिहास को पूरी दुनिया में
मुख्य इतिहास की तरह संभालने
और शेष दुनिया को अपना अपना इतिहास
उपइतिहास की तरह मानने की दे सकता है हिदायत
अपने ही देशवासियों के साथ साथ चढ़ाते हुए
अपने हथियारों की बाहें अन्य देशों से भी
कह सकता है जो मेरी लड़ाई में साथ नहीं मेरे
वह इतिहास में भी साथ नहीं होंगे मेरे
और मेरे बिना इतिहास भी दुनिया का क्या इतिहास
अमेरिका के राष्ट्रपति होने के जितने मजे हैं वह
दुनिया के किसी देश के राष्ट्रपति होने के नहीं
आप हो जायें किसी भी देश के राष्ट्रपति
आपके राष्ट्रपति होने का तब क्या मतलब
जब आपकी जेबें डालरों से न भरी हों
इस मामले में एक अमेरिका का राष्ट्रपति ही है
जिसकी जेब उलीचने की हद तक डालरों से भरी रहती है
अपने कोट की जेबों में भरे डालरों के मजेदार खेल में
वह इतना माहिर होता है कि उसके दायीं जेब से
डालर निकालकर बायीं तरफ उछालते ही
इराक हो जाता है और बायीं जब से निकालकर
दायीं तरफ उछालते ही हो जाता है अफगान
वह यूरों को पुचकारता है उसे ज्यादा न उछलने की
सलाह देता है और डालर के कान में
धीरज बनाये रखने के लिए फुसफुसाता है
अमेरिका का राष्ट्रपति बस अमेरिका का राष्ट्रपति
होने की वजह से इतने मजे में दिखाई देता है
कि उसकी रगड़ने की वजह से अक्सर
लाल हो जाती आंखों में लगातार किरकिरी सा चुभता
क्यूबा किसी को दिखाई ही नहीं देता
अपने प्रेम के बराबर नफरत करनी पड़ सकती है न चाहते हुये
क्योंकि अमेरिका के राष्ट्रपति होने के अपने ही मज़े हैं
मूल स्रोत : पहल’ 86.. त्रैमासिकी अँक - मई, जून, जुलाई 2007..
खँड - पहल-कवितायें-विशेष .. .. रचना- श्री पवन करण पृष्ठ 52-54
प्रसँगतः अँतर्जाल से एक अन्य छवि
मुझे लगता है कि इस कविता की प्रासँगिकता पर आज भी कोई प्रश्नचिन्ह नहीं उठ सकता, सो इसे यहाँ सहेज़ दिया । जबकि यह बता दूँ कि यह कविता श्री पवन करण द्वारा सन 2005 के पूर्वार्ध में लिखी गयी थी और पहल ’86 के अँक में प्रथम बार दृष्टिगोचर हुई है । स्थितियाँ जस की तस हैं, बल्कि वह बदतर की ओर ही घिसटती जा रही हैं । अमेरिका और अमेरिकी राष्ट्रपति का मूल चरित्र अपनी जगह बरकरार है, राष्ट्रपति का नाम और नस्ल बदल जाने मात्र से क्या होता है ?
व्यंग्य है. ठीक है लेकिन अमेरिका का राष्ट्रपति अपने किये पर माफी मांगता है, उसके बच्चे गलती करने पर सजा भुगतते हैं, वह अपने और अपने नागरिकों के हितों के लिये कुछ भी करने को तैयार है और हम?
हम अपने लोगों को मरवाते हैं और संयम बरतते हैं, निन्दा कर देते हैं. एक दरोगा की औलाद कानून की एक कर दे लेकिन उसे कौन पकड़े और कौन सजा दे. राष्ट्रपति के बच्चे की बात तो बहुत दूर.
यहां बलात्कार सिद्ध होने पर भी नेता कहे कि जनता की अदालत में जायेंगे तो मान लीजिये कि हमारी नैतिकता कहां घुस गई है..
अमेरिका की आलोचना कर बुद्धिजीवी बनना तो फैशन है...
kavita vakai ekdam hi sahi, shadnar hai lekin dusri nazar me jaise hi bhartiya nagarkik ki tippani par nazar padti hai to kuchh kahne ki bajay sochne me lag jata hu ki kaha par galat hain hamare bharitya nagrik....
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
आप सही कह रहे हैं किन्तु क्या हमने स्वयँ ही ऎसी स्थितियाँ नहीं बनायी हैं, या बनने देने को मौन रह कर बढ़ावा नहीं दिया है ? बुद्धिजीवी होने का दँभ मैंनें कभी भी न रखा, क्योंकि मुझे व्यक्तिगत तौर पर इस वर्ग के ख़्याली नपुँसक कुलाबे अपमानजनक लगते रहे हैं ।
बाकी यहाँ मेरा उद्देश्य एक अच्छी रचना को सहेज़ना भर है, एक सामान्य सहमति और बहस के रास्ते खुले हुये हैं.. सभी का स्वागत है, देखिये..
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
पुनश्चः
पिछले 15 अगस्त को आपने स्वीकार किया है कि " हम ही वह लोग हैं जो सड़क पर अतिक्रमण होने पर दूसरों को कोसते हैं, शासन को गालियाँ देते हैं, लेकिन मौका मिलने पर घरों के आगे ग्रिल लगाकर जगह घेरने से नहीं चूकते ।
हम लोग अपनी संस्कृति, अपनी परम्पराओं पर इतराते रहते हैं, और पश्चिम का मजाक उड़ाते रहते हैं, लेकिन हम लोग दोहरे मापदंडों वाले लोग हैं, दिखावे से ग्रस्त ।"
तो हम दूसरों के बेदाग छूटने का और बेलगाम साँढ़ की तरह व्यवहार करने को चुनौती किस नैतिक आधार पर दें ?
साथ ही सवाल यह है कि जनता जिसे निरीह जनता कहा जाता है, उसके साथ या उसके हितों के लिये कितने बुद्धिजीवी इस समय देश में सक्रिय हैं, या सक्रिय न भी हों तो उसके साथ खड़े होने को तैयार हैं ?
मजेदार कविता,
पर यह पंक्ति पसंद आई,
यह भी कितना मजेदार है कि अमेरिका के राष्ट्रपति का घर
सुधारगृह के स्तर का भी नहीं है
:)
अमेरिका में उद्योगपतियों का एक गुट सड़क पर किसी आदमी को पकड़ता है,उसे व्हाइट हाउस ले जाता है और देशवासियों से कहता है-यह तुम्हारा राष्ट्रपति है।
अमरीकी और उनके मिथक
अनूप जी .....बजा फरमाए है गुरुवर...
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
कुछ भी.., कैसा भी...बस, यूँ ही ?
ताकि इस ललित पृष्ठ पर अँकित रहे आपकी बहूमूल्य उपस्थिति !